Hindi Gay sex story – रद्दी वाला
रद्दी वाला
प्रेषक : बबलू
दोस्तों मेरा नाम बबलू है और एक बार फिर से अन्तर्वासना पर अपनी अगली चुदाई की दास्तान के साथ आप सब के सामने हाज़िर हूँ।
दोस्तो, प्रेम अंकल से चुद चुद कर मुझे लौड़े का चस्का लग गया। मुझे गांड मरवाने का नवाबी शौक पड़ गया और मुझे यह नवाबी शौक लगाकर अंकल खुद बंगाल जा बैठे। मैं उनके लौड़े के बिना तड़फने लगा, मचलने लगा। समझ में न आता कि गांड की प्यास किस तरह, किस से बुझवाऊं।
तभी याहू चेटरूम से मुझे कुछ गुर मिले और मैंने उन गुरों का इस्तेमाल करने की सोची।
एक दिन जब सभी घर से चले गए, मैं स्कूल से फूट कर घर वापस आ गया। गर्मी बहुत थी, जब दोपहर हुई, सोचा, कोई सेल्समेन आ जाये या फिर कोई और। तभी रददी वाले की आवाज़ सुन झट से उठा रूम का ए.सी ओन किया और गेट की तरफ गया। मैंने देखा, एक हट्टा कट्टा आदमी था, रंग में भले सांवला था।
मुझे रददी बेचनी है !
हाँ जी ! लाओ !
मैं उसको अपने साथ अन्दर ले गया और उसको स्टोर में से अखबार उठाने को कहा। वो अखबार उठा कर ले गया। सोचा, कैसे शुरुआत करूँ?
वह रद्दी बाहर छोड़ कर वापस आया।
खाली बोतलें भी हैं और कुछ पुरानी किताबें।
किताबें उतारने के लिए मैं उसको अपने कमरे में ले गया। ए.सी की ठंडक से उसका पसीना उड़ने लगा। मैंने उसको अलमारी के ऊपर से किताबें उतारने को कहा, अपने होंठो को चबाते हुए कहा।
वो मुड़ा ही था कि मैंने अपना पजामा उतार दिया। मैं सिर्फ फ्रेंची में था, सिर्फ लौड़ा ढका हुआ था और मेरे गोरे रंग के भरे भरे चूतड़ किसी का खड़ा करने को काफी थे। अपनी टी-शर्ट भी उतार दी। वो स्टूल पर पैर रखने लगा था कि मैं पीछे से उसके साथ लिपट गया। एकदम से ऐसा करने से वो घबरा गया। मैंने हाथ सीधा उसके लौड़े पे डाला और मसलने लगा और उसके पजामे का नाड़ा खोल दिया, उसका पजामा नीचे गिर गया। वो मेरी तरफ मुड़ा और जब उसने मुझे आधा नंगा देखा, वो भी बहकने लगा।
मैंने उसकी तरफ अपनी पीठ करके घोड़ी की तरह झुकते हुए अपने चूतड़ हिलाए, मटकाए। उसने झट से हाथ मेरी गोरी गांड पे रख दिया और फेरने लगा।
मुझे मस्ती आने लगी। मैंने जल्दी उसके कच्छे को नीचे कर उसके मोटे लौड़े को पकड़ लिया। उसका लौड़ा प्रेम से ज्यादा बड़ा था।
अँधा क्या ढूंढे, दो आँखें !
ठंडा कमरा, ऊपर से प्यासी गांड ! सहला कर मैंने उसका खड़ा कर दिया। उसको बिस्तर पे धक्का दिया और उसके लौड़े को मुहं में भर लिया। उस बेचारे ने कभी किसी से चुसवाया नहीं था, उसको मजा सा आया।
उसका काला लौड़ा मेरे गुलाबी होंठों में सुन्दर लग रहा था। मुझे लौड़ा चूसना बहुत पसंद है, एक हाथ से में अपनी गांड के छेद में ऊँगली कर रहा था। जब उसने मुझे देखा वो खुद अपनी ऊँगली मेरी गाण्ड में डालने लगा।
बहुत लम्बा लौड़ा था।
अब मेरी गांड जवाब देने लगी थी कि मानो कह रही हो कि मुझमें लौड़ा डाल दो !
मैंने मुँह से लौड़े को निकाल लिया और कोल्ड क्रीम लगा कर उसके लौड़े को अपनी गाण्ड के छेद पे टिकाते हुए उसको डालने का इशारा कर दिया। उसका लौड़ा मोटा था इसलिए घुस ना पा रहा था। मैंने उसको सीधा लेटने को कहा। उसका लौड़ा अब कुतब मीनार की तरह अकड़ा हुआ था। मैं उसके ऊपर से आते हुए उसके लौड़े को ठीक छेद पर रखते हुए धीरे धीरे उसपर बैठता गया, तकलीफ सहते हुए जड़ तक अन्दर ले लिया और फिर उछल उछल कर चुदने लगा।
वो भी नीचे से कूल्हे उठा उठा के गांड मारने लगा, बोला- आज तक किसी की गांड नहीं मारी थी।
वो मुझे अपने नीचे लिटाते हुए दोनों टांगें खोल कर चोदने लगा।
मेरे आका ! फाड़ डाल ! मेरी भोसड़ी को ले !
बहनचोद ! फाड़ने के लिए तो कर रहा हूँ !
और तेजी से आगे पीछे करने लगा, एकदम से मुझे जकड़ लिया और अपनी पिचकारी मेरी गांड में छोड़ दी, बोला- ओये होए ! साले ! क्या माल है तू ! इतनी आग लड़की में न होगी !
उसने खुद बाहर नहीं निकाला। खुद ही सोते हुए बाहर निकला।
ऐसे ही दोनों चिपके रहे, उसको मेरा जिस्म बहुत पसंद आया।
इस तरह पूरी दोपहर में उसने मुझे दो बार ठोका और चला गया। जाते हुए बोला- मैं दो दिन बाद आता हूँ !
लेकिन अगले दिन जब स्कूल से आया तो मुझे एक और लौड़ा मिल गया।
अगली कहानी में बताऊंगा कि वो कौन था।