Hindi Gay sex story – एक अच्छा कॉलेज मिल गया

Hindi Gay sex story – एक अच्छा कॉलेज मिल गया

उसको शहर का ही एक अच्छा कॉलेज मिल गया और वो यहीं आ गया। उनका कंपल्सरी हॉस्टल था, तो उसने अपने शहर के ही किसी पहचान के लड़के को रूम पार्टनर बनाया। उनको संडे और बाकी छुट्टियों के दिन ही छुट्टी रहती थी लेकिन असाइनमेंट्स रहते थे, तो अब तो उसका आना बहुत कम हो गया था, फिर भी वो कभी कभी आ जाया करता था और हमारी नॉनस्टॉप मस्ती चालू हो जाती थी। मैंने उससे बहुत कहा कि रात को रुक लेकिन उनके हॉस्टल का रूल था कि रात हॉस्टल में ही होना चाहिए और फिर उसने कहा कि पार्टनर को क्या बोलूँगा, इसलिए वो कभी नहीं रुक पाया।

और फिर वो एक दिन अपने पार्टनर को ले के आ गया। बिना पूछे, बिना बताए, ऐसा नहीं कि मैं मना करता, मैं तो चाहता ही था कि वो अपने दोस्तों को लाए, लेकिन कभी उससे कह नहीं पाया था। और क्या पार्टनर था, हंक हल्क, बॉडी बिल्डर, 6’ क़द, 80 किलो वज़न, डोले-शोले, सीना। उसको देख के ही मेरे मुँह से वाऊ निकला। वो ऐसे मुसकराया जैसे कह रहा हो “मुझको देख कर लोगों को अक्सर ऐसा ही होता है।“ मैंने उसे गले लगा लिया। और बाँहों से उसको दबाने की क़ोशिश करी लेकिन उसके सॉलिड जिस्म का एक मिलीमीटर भी नहीं दबा, वो हँसा। हम आए बैठे। बातें की।

उसका नाम भूपेन्द्र था। और वो अनिल के गाँव का ही था। अनिल से डेढ़ साल बड़ा था। पढ़ाई में एवरेज था। अनिल को जहाँ मेरिट वाली सीट मिली थी, वहाँ भूपेन को पेड सीट मिली थी। अच्छा खुला हुआ लड़का था, लेकिन सेक्स से अन्जान था। अन्जान तो नहीं, लेकिन अनुभवहीन। गाँव में पिता जी का जल्वा था, टेरर था, इसलिए कभी वो किसी लड़की को पटाने की हिम्मत नहीं कर पाया था जब की उसके जिस्म को देख कर उसको बहुत सी लड़कियों भाभियों, चाचियों ने लाइन मारी थी।

मैं तो ऐसा निहाल हो गया कि मैंने ठान लिया इसके साथ करना ही है। अनिल उसको सब जानते हुए यहाँ लाया है तो उसने कुछ सोचा ही होगा, या शायद इसको भी बताया हो, लेकिन ऐसा लगा नहीं कि इसको कुछ मालूम है। फिर भी, मैंने चाय नाश्ते के बाद टीवी पर बीपी चला दी सीडीप्लेयर से। हम तीनों सोफ़े पर बैठे थे, एक तरफ अनिल, दूसरी तरफ़ भूपेन और बीच में और कौन? हम। मूड बना, मेरा लंड पैंट में टन्नाया और भूपेन की पैंट में एक भयानक तंबू सिर उठाता दिखा। लेकिन उससे पहले अनिल मेरा पहला प्यार था तो उसका ध्यान देना था। मैंने धीरे से अनिल की टाँगों पर हाथ रखा और फिर उसकी जाँघों तक ले गया और उसका टन्नाया लंड मेरे हाथ में आया। भूपेन सीधे टीवी को देख रहा था लेकिन मैं जानता था कि उसकी कनखियों ने उस हरकत को तो देखा ही होगा। फिर मैंने अपने दूसरा हाथ भूपेन की टाँगों पर हाथ रखा और फिर उसकी जाँघों तक ले गया और उसका टन्नाया लंड मेरे हाथ में आया। लंड नहीं मूसल था वो। पैंट के ऊपर से भले ही और बड़ा दिख रहा हो लेकिन सात आठ इंच का और जबरदस्त मोटा था। उसने कोई ऐतराज़ भी नहीं किया था लेकिन कोई सहयोग भी नहीं दिया था।

मैं भूपेन को नंगा करने के लिए तड़प रहा था लेकिन एकदम से उससे कुछ करने से उसके ग़ुस्सा हो जाने, मना कर देने, चले जाने का चान्स रहता है, इसलिए पहले अनिल से कर के भूपेन को ट्रेलर दिखाना चाहिए था। मैंने भूपेन से अपना ध्यान कुछ देर के लिए हटा कर अनिल पर किया और उसको अपनी तरफ खींच लिया, वो खिंचा चला आया। मैं उसके लंड को दबाने लगा और फिर उसकी ज़िप खोल दी और उसके खड़े लंड को बाहर निकाला और हिलाने लगा। चार-पाँच स्ट्रोक्स में ही उसकी सिसकारियाँ गूँजी और उसका माल निकल कर मेरे हाथ में फैल गया, उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की थी, सहयोग नहीं तो विरोध भी नहीं किया था। मतलब कि भूपेन को लग गया होगा कि अनिल की राजी मर्जी थी, वरना तो भूपेन दोस्त की इज़्ज़त लुटने से बचाने के लिए अगर मुझे एक हाथ भी मार देता तो मैं सात दिन तक कोमा में चला जाता।

खाली होकर अनिल बाथरूम में सफ़ाई करने गया। मैंने रुमाल से अपना हाथ पोंछा। और फिर मैं भूपेन पर टूट पड़ा। उस जैसे हंक को चूमने लिपटने की गुंजाइश कम दिख रही थी, मेरा अनुभव है कि नए लड़के चूमा चाटी को नापसंद करते हैं, जबकि लंड चुसवाने के लिए कलप उठते हैं, इसलिए मैंने कोई रिस्क नहीं लिया और सोफ़े के नीचे ज़मीन पर बैठ कर मैंने अपना मुँह उसकी गोद में रख दिया और पैंट के ऊपर से उसके लंड को चूमने लगा। यह सबमिशन की पोजीशन है, इससे लड़के को समझ में आ जाता है कि आप उसका लंड ही चूसना चाह रहे हैं और किसी प्रकार का कोई ख़तरा नहीं है कि आप उसकी गाँड मार लें। तो उसके तैयार होने का चांस बहुत बढ़ जाता है। वही हुआ। मैंने उसकी ज़िप खोली और उसकी अंडीज़ में से उसका लंड निकाल लिया जो अब तक टनटना के खड़ा हो चुका था। लंड नहीं था वो मूसल, मूसल++ था, सात इंच से ज़्यादा लंबा होगा, आधा तो पैंट अंडीज़ में ही छुपा था, मेरी कलाई नहीं तो अनिल की दुबली कलाई जितना मोटा, जिस्म की हड्डियों से भी कड़ा, खाल से आधे ढके बैंगनी सुपाड़े में प्रीकम का तालाब। मैंने उसके दोनों हाथों को ला कर अपने सर के पीछे रखा तो उसके हाथ मेरे बालों को सहलाने लगे और फिर मेरे बालों का एक गुच्छा पकड़ कर अपने लंड पर फिराने लगे। और फिर मैं उसके लंड पर टूट पड़ा और उसे चूमने और फिर मुँह में भर कर चूसने लगा।

अनिल वापस आया और चुपचाप सोफ़े पर बगल में बैठ कर बीपी देखने लगा जैसे हम दोनों तो रूम में हो ही नहीं। भूपेन के दोनों हाथ मेरे सर को गाइड कर के अपने लंड पे आगे पीछे भी कर रहे थे। मैं चूसता रहा, चूसता रहा, उसकी भारी साँसें कानों से सुनाई दे रही थीं, और फिर उसका बदन थरथराया और उसके लंड से उसके माल की पिचकारी की पिचकारी की पिचकारियाँ निकल कर मेरे मुँह में जाने लगीं। वो मेरे बालों और सर को पकड़ के अपने लंड को मेरे मुँह में अंदर, और अंदर डाले जा रहा था। मेरी साँस रुक रही थी, मैं झटपटा रहा था।

वाऊ। वाह, आहा।

और फिर उसका निकलना खत्म हुआ और वो सोफ़े पर पीछे टेक लगा कर बैठ गया, उसका मोटा लंड ढीला होने में ही बहुत टाइम लगा और तब तक मैं उसका लंड लगातार चूसता रहा था, उसका ढेर सारा माल जो मेरे मुँह में समा नहीं पाया था और उसके लंड और उसकी झाँटों के गुच्छे पे टपक गया था, उसको ढूँढ-ढूँढ के चाट रहा था।

फिर मैंने उसे छोड़ा और सोफ़े पर बैठ गया। जमीन पर बैठना उतना सुविधाजनक नहीं था, थक जाते हैं। भूपेन ने अनिल को देखा जैसे पूछ रहा था कि ये सब क्या था। अनिल ने पूछा “बुरा लगा क्या?” भूपेन ने सोचा फिर “नहीं।“ में सिर हिलाया। फिर भूपेन ने मुझे एक सवालिया नज़रों से देखा। मैंने कहा “ये काउन्सलिंग के लिए आया था, तो दो दिन यहीं रहा था, तब हो गया था इसके साथ।“ भूपेन ने समझा लेकिन कुछ नहीं कहा।

और फिर तो शाम तक वो दोनों रहे और दोनों का दो तीन बार और चूसा। कपड़े भी ढीले किए, कुछ उतारे भी। मैं एक के साथ ही खुल कर सब कुछ कर पाता हूँ। अगर कोई तीसरा भी मौज़ूद रहे तो मैं झिझक जाता हूँ और कुछ चीज़ें नहीं करता हूँ चाहे वो पहले की जा चुकी हों। और लड़के भी अकेले में कई चीज़ें करवा जाते हैं लेकिन किसी तीसरे के सामने वही करने में बहुत झिझकते हैं, प्रतिरोध करते हैं, मना कर देते हैं। इसलिए मैंने उन दोनों की ही गाँड नहीं मारी, न ही कुछ भी किया पीछे। उनके मना करने पर भी जबरदस्ती उनका लिप किस कर लिया था और चेहरे को चूमा चाटा था। थोड़ी देर में वो इसके आदी हो गए थे।

शाम को वो गए। मेरा दिन भर दे टन्नाया हुआ था। मैंने भूपेन की यादों में मुट्ठ मारा और क्या मूसलाधार निकला।

उनके कॉलेज की पढ़ाई बहुत कठोर थी, और वो गाँव से हिन्दी मीडियम से आए थे इसलिए उनको दिक़्क़त ज़्यादा होती थी, इसलिए वो पढ़ने में लगे रहते थे और उनका आना कम बार होता था, फिर भी वो आते थे, और ऊपर बताया जितना ही होता था। मैं और-और करने के लिए तड़प रहा था भूपेन के साथ।

और फिर जब एक बार वो बहुत-बहुत दिनों बाद आए तो मुझसे रहा नहीं गया, और मैंने चाय-नाश्ते वगैरह किसी भी फ़ॉर्मेल्टी के बिना, उनके रूम में आते ही भूपेन को अपनी बाँहों में जकड़ के सोफ़े पे बिठा लिया और उसके बदन, सीने निप्पल्स को सहलाते, दबाते, मसलते हुए, उसके होंठों को अपने मुँह में भर के बुरी तरह से चूसने लगा। उसके मुँह में ज़बान भी डाली, पहली बार। उसके मुँह से गूँ-गूँ की आवाज़ निकल रही थी, वो झटपटा रहा था, मुझसे सब्र नहीं हो रहा था, और मैं उसके बदन को मसलता और उसके होंठों को चूसता रहा। ये सब करीब 10 मिनट तक चला। और फिर मैंने उसकी शर्ट उतारी, बनियान उतारी, निप्पल्स मुँह में भर के चूसे, पहली बार। और फिर मैंने उसकी बैल्ट खोली, जीन्स के बटन और ज़िप खोली।

और जब अंडीज़ सामने दिखी तो पाया कि उस पर एक इतना बड़ा और गीला धब्बा बना है जो प्रीकम का नहीं हो सकता। उसकी अंडीज़ के भीतर हाथ डाल के उसके लंड पर फिराया तो देखा उसका लंड ठंडा हो चुका था और उसपर खूब सारा गीला चिपचिपा चिपका हुआ था। उसका माल निकल चुका था।

मेरा के एल पी डी हो गया। मैं उसके मूसल को चूसने के लिए तड़प रहा था और उसको इतना मज़ा मिला था कि उसने माल पहले ही छोड़ दिया था, मुझे हिन्ट भी नहीं दिया था कि उसका प्रेशर बन रहा था ताकि मैं उसका चूस लेता। मुझे कुछ ग़ुस्सा भी आया, कुछ हँसी भी आई। और मैं उसको थोड़ा डाटने लगा। “साले 8 इंच का लंड है, लेकिन इतनी जल्दी झड़ जाता है तो किस काम का। अब तो तू किसी काम का नहीं बचा। अब तो बस तु गाँड ही मरवा सकता है।“ वगैरह वगैरह।

और मैंने उसको सोफ़े पे लिटा दिया और उसकी जीन्स और अंडीज़ उतार दी। वो एकदम नंगा लेटा था। और फिर मैं अनिल को नंगा करने लगा। उसने बिल्कुल भी नहीं रोका और 2-3 सेकंड में ही अनिल के सारे कपड़े उतर चुके थे, और उसका छोटा-पतला लंड टन्ना के खड़ा पानी छोड़ रहा था। मैंने अनिल को डपटा “गाँड मार इसकी।“ अनिल कसमसाया तो मैं नंगे अनिल को खीच कर नंगे लेटे भूपेन के ऊपर लाया और भूपेन के अनिल के खड़े लंड को भूपेन की गाँड पर टिका दिया। मैंने भूपेन के लंड पर बिखरे उसके ही माल को उँगलियों में भर कर उसी की गाँड पर पोत दिया और फिर अनिल के पुट्ठों को आगे धक्का दिया। उसका लंड भूपेन की गाँड में घुसने लगा। भूपेन कसमसा रहा था, इधर उधर मचल रहा था, वो चाहता तो एक झटके में ही हम दोनों को उठा कर पटक सकता था, लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया और बस मचलता रहा।

और कुछ ही देर में अनिल का पतला छोटा टन्नाया लंड भूपेन की गाँड में पूरा घुस चुका था। अनिल भी मस्ती में आ चुका था, और उसने एक दो ठसके ही मारे कि उसका बदन काँपा, और वो भूपेन के बदन पर गिर कर उससे लिपट गया और अपने लंड को उसकी गाँड में और अंदर तक घुसा लिया। अनिल का माल निकल रहा था, वो कराह रहा था। मैंने पाया कि भूपेन ने भी अनिल को अपने ऊपर जकड़ लिया था। भूपेन पीठ के बल ही लेटा था, और अनिल ने उसकी गाँड आगे से ऊपर से ही मारी थी।

और फिर अनिल का निकलना बंद हुआ लेकिन फिर भी वो दोनों कुछ देर तक एक दूसरे से लिपटे रहे, एक दूसरे को चूमते रहे, एक दूसरे के बदन को सहलाते रहे बहुत प्यार से।

फिर अनिल हट के सफ़ाई करने बाथरूम चला गया। भूपेन ने भी उठने की क़ोशिश की लेकिन मैंने उसको फिर लिटा लिया और मैं उसके ऊपर चढ़ गया। वो मुझे रोक सकता था, लेकिन वो चुपचाप लेटा रहा, और मैंने अपनी ज़िप खोल के अपने टनटनाए लंड को बाहर निकाला और भूपेन की टाँगों को ऊपर करके उसकी गाँड से टिका कर धक्के मारने लगा। वो फिर कसमसा रहा था, मेरा लंड अनिल के लंड से दो गुने से ज़्यादा मोटा जो था, लेकिन फिर भी उसकी भीगी, खुली गाँड में मेरा लंड जाने ही लगा और फिर जो उसको मस्ती आई तो उसने मुझे ख़ुद से लिपटा लिया। कुछ देर में मेरा पूरा लंड उसकी गाँड को पूरा फैला के अंदर जा चुका था। मैं ठसके मार रहा था, उसके होंठ चूम रहा था, उसका चेहरा चाट रहा था, उसके निप्पल्स दबा रहा था, उसकी सिसकारियाँ निकल रही थीं। अनिल वापस आया और पास में बैठ गया।

और फिर थोड़ी देर में मेरा भी पूरा माल उसके अंदर निकल गया। हम कुछ देर लिपटे रहे। और फिर हम दोनों जा के एक साथ नहाए, एक दूसरे के बदन पर साबुन लगाया, रगड़ा, धोया।

वाऊ, व्हाट ए हाइट ऑफ़ मस्ती।

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