हिंदी समलैंगिक कहानी: अजनबी मेहरबान: 1
हिंदी समलैंगिक कहानी: अजनबी मेहरबान: 1
हिंदी समलैंगिक कहानी: हेलो दोस्तों, जैसा के आप सब जानते ही हो के मेरा नाम आशु है, , में हरियाणा के यमुना नगर का रहने वाला हू….!! अभी तक आपने मेरे दिल्ली की नौकरी से जुड़े अनुभव पढ़े… आज में आपको बताता हूं के चंडीगढ़ से ट्रेनिंग करने के बाद मुझे ये शहर बहुत पसंद आया.. और उस पर ये की चंडीगढ़ मेरे शहर से ज़्यादा दूर नहीं था … काफी जुगाड़ लगाने के बाद आखिर मेरा तबादला चंडीगढ़ के पास जीरकपुर वाले ऑफिस में हो गया !! अब मुझे रहने के लिए एक फ्लैट किराए पर मिल तो गया लेकिन सेक्टर 52 में… लगभग चंडीगढ़ और मोहाली के बीच का हिस्सा… ज़्यादातर खाली और सुनसान था उस वक़्त.. इसीलिए शायद सस्ता भी था !! एक दो घरों के अलावा किसी को नहीं जानता और न ही कोई मुझे जानता है।
फरवरी का पहला या दूसरा हफ्ता चल रहा था और मैं ऑफिस से घर जा रहा था। ऑटो वाले ने मुझे दो चौराहे पहले छोड़ दिया था… वहां चंडीगढ़ बॉर्डर के पास ज़्यादातर नाका लगा ही रहता है… वो आगे नहीं आया… मैं आगे जाने वाली सवारी का इंतज़ार करने लगा.. रात के 12.30 बज चुके थे और रात काफी हो गई थी.. रात और सर्दी का माहौल होने के कारण सड़क पर एक्का दुक्का वाहन ही दिख रहे थे और मेरे चेहरे पर चिंता के भाव थे कि इस समय कोई सवारी मिलेगी या नहीं।
मैंने आधा घंटा इंतज़ार किया और फिर पैदल ही 52 वाले रोड पर चल पडा़ ताकि कोई उस तरफ जा रहा हो तो उसके साथ ही निकल जाऊँ। गांव के लोग इस मामले में काफी दिलदार होते हैं कि अगर रात को कोई गांव का बंदा रास्ते पर अकेला जा रहा होता है तो खुद ही लिफ्ट दे देते हैं लेकिन शहर में तो आप जानते ही हो…
लेकिन आज तो चलते चलते आ गया था मैं… सड़क पर रात का सन्नाटा था और ज़ोरदार ठंड भी शुरु हो गई थी जिससे रोड पर लगी लाइटें धुंधलाई सी रोशनी दे रही थीं, मैं सहमा हुआ अकेला सड़क पर चला जा रहा था।
फिर मेरे कानों में भट भट करती एक बाइक की आवाज़ आने लगी.. उम्मीद हुई है कि शायद यह बाइक उसी तरफ जा रही हो! बाइक पास आते देख मैंने मुड़कर देखा तो बुलेट बाइक पर दो पुलिस वाले गश्त लगा रहे थे। मुझे अकेला चलते हुए देखकर बाइक मेरे पास लाकर रोक दी।
दोनों ही गबरु जवान थे लगभग 25-26 साल के..
मेरी नजर उनकी वर्दी पर पड़ी …दोनों ही कांस्टेबल थे..आगे वाले का नाम शायद शुभ पढ़ा जा रहा था और पीछे वाले का राज .. भरे हुए शरीर पर कसी हुई खाकी वर्दी और पैरों में काले जूते.. दोनों की जांघें इतनी भारी थीं कि मेरे जैसी दो बन सकती थीं उनमें .. दोनों एक दूसरे से सटे हुए बैठे थे और पिछले वाले का एक हाथ अगले वाले की जांघ पर रखा हुआ था.. मोटी मोटी उंगलियाँ थीं.. और दूसरे हाथ में डंडा घूम रहा था..
देखने में दोनों ही अच्छे थे लेकिन पीछे वाला ज्यादा ही आकर्षित कर रहा था, मुझे उसकी खाकी शर्ट के ऊपर वाले खुले बटन में से बाहर आ रहे छाती के बाल ज्यादा आकर्षित कर रहे थे।
आगे वाले बंदे से सटा होने के कारण उसकी जिप का उभार नहीं देख पा रहा था जिसको देखने के लिए मेरी नजरें पूरी कोशिश कर रहीं थीं।
बाइक रोक कर आगे वाले ने पूछा- क्यों बे.. इतनी रात को अकेला क्यूं चल रहा है सड़क पर? कहीं किसी ने तेरी गर्दन पर चाकू रख दिया तो हमारी परेशानी बढ़ जाएगी.. बता कहाँ जा रहा है?
मैंने घबराते हुए कहा- सर 52 सेक्टर जा रहा हूँ..
‘क्यूं?’ ‘सर। घर है मेरा वहाँ पर…’ ‘तो अभी कहाँ से आ रहा है?’ ‘सर ऑफिस से…’
‘ठीक है.. हम भी वहीं जा रहे हैं, तुझे वहाँ तक छोड़ देंगे.. आज लद ले (बैठ ले) बाइक पे!’ पीछे वाला थोड़ा आगे खिसक गया और मैं बैठने लगा.. फिर पीछे वाला बोला- रुक एक मिनट, मैं 1 नं (पेशाब) करके आता हूँ..
यह कहकर वो पास ही रोड के किनारे टांगें चौड़ी करके खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथों को आगे ले जाकर पैंट की जिप खोलकर खडा़ हो गया.. मोटी सी मूत की धार उसकी टांगों के बीच में से नीचे गिरती दिखाई दे रही थी जो नीचे गहरे झाग बना रही थी.. और मेरी नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थी। पेशाब करते करते एक बार उसने पीछे मुड़कर देखा तो मैं उसी को देख रहा था। उसने दोबारा मुंह फेर लिया और हमारी तरफ मुड़ते हुए जिप बंद करता हुआ आने लगा। उसको जिप बंद करता देख मेरे मुंह में पानी आ गया और होंठ खुल गए.. मेरी यह हरकत भी उसने शायद सरसरी नज़र से देख ली थी लेकिन बिना कुछ रिएक्ट किए वो बाइक के पास आ गया और बोला- चल बैठ जा बाइक पर..
मैंने कहा- सर, आप बैठ जाइये पहले..
‘जैसा कह रहा हूँ वैसा कर, ज्यादा कानून मत चला समझा.. एक तो रात का वक्त है और बकचोदी मार रहा है..’
यह सुनकर मैं चुपचाप बीच में बैठ गया और वो अपनी भारी सी टांग को घुमाता हुआ मेरे पीछे आकर बैठ गया.. बाइक स्टार्ट हुई और हम सड़क पर चल पड़े।
सड़कों पर स्पीड ब्रेकर से गुजरते हुए जो झटके लग रहे थे उनके चलते पीछे वाले (राज ) का भारी सा हाथ मेरी आधी जांघ को कवर कर चुका था.. मेरी कोमल जांघों पर उसकी सख्त उंगलियाँ मुझे अलग से महसूस हो रहीं थीं। वो मेरी पीठ से सट चुका था और उसकी छाती मेरी पीठ को गर्म कर रही थी जिसका अहसास मुझे वासना की ओर धेकल रहा था..
इधर आगे की तरफ मेरी चूचियाँ शुभ की पीठ से रगड़ खा रही थीं.. मेरे फॉर्मल पैंट का जिप वाला भाग उसकी मोटी गांड से सट चुका था और मेरा हाथ उसकी गोल कसी हुई जांघ पर जाकर कांपने लगा था।
शुभ बोला- क्या हुआ भाई, ठंड लग रही है क्या?
मैंने कहा- सर.. थोड़ी थोड़ी लग रही है..
तो पीछे से राज हंसने लगा और बोला- कोई बात नहीं, थोड़ी देर की ही बात है!
यह कहते हुए एक स्पीड ब्रेकर आया और बाइक पर हल्का सा झटका लगते ही राज हल्का सा उछला और उसकी जिप का भाग मेरी गांड से बिल्कुल सट गया। अब उसकी बालों वाली छाती मेरी पीठ से बिल्कुल सट गई थी, उसकी जिप का एरिया मेरे चूतड़ों में घुसने को हो रहा था और उसकी मोटी मोटी गर्म जांघें मेरी नर्म नर्म जांघों से सटी हुई मुझे ऊपर से नीचे तक गर्म कर रही थीं..
आनन्द के मारे मेरी आंखें बंद होने लगीं थीं और मेरे शरीर का भार राज की ओर झुकता जा रहा था। मेरी गर्दन पर उसकी गर्म सांसें आकर लग रही थीं जिससे उसका मुझसे सटे होने का अहसास आग में घी का काम कर रहा था।
अगले स्पीड ब्रेकर पर से बाइक गुजरी और राज ने अपनी गांड उकसाते हुए अपनी जिप का हल्का सा झटका मेरे चूतडो़ं पे मारा, मेरी धड़कन थोड़ी सी बढ़ गई.. मैंने जब ध्यान से महसूस किया तो लगा कि उसकी जिप में कोई कड़ी और मोटी सी चीज़ झटके मार रही है जिसका हल्का सा अहसास मुझे अपने नर्म चूतड़ों पर हो रहा था।
मैं समझ गया कि उसका लंड खड़ा हो चुका है और वो मेरे गोरे नर्म चूतड़ों में घुसना चाहता है। यह सोचकर मेरी हवस उफान पर आ गई और अगले स्पीड ब्रेकर पर मैंने भी अपनी गांड हल्की सी उठाते हुए उसकी जिप की तरफ धकेल दी।
बदले में उसने डंडा बाइक में फंसाते हुए अपना दूसरा हाथ मेरे पेट पर लाकर कस दिया और मेरे पेट को भींचने लगा। उसकी ठोड़ी अब मेरे कंधे पर थी, उसका उल्टा हाथ मेरी जांघ पर फिर रहा था और सीधा हाथ दूसरी तरफ से मेरे पेट को भींचते हुए उसकी छाती की तरफ खींच रहा था।
और इस आनंद में मैं यह भूल गया कि मेरा सीधा हाथ शुभ की जांघ को मसल रहा है।
शुभ ने हरियाणवी भाषा में कहा- अरै राज के कर रया है (अरे राज क्या कर रहा है)
राज बोला- करूंगा इब(करुंगा अब)
ठंडी के मौसम में हम लेकर आए हैं एक गरमा-गरम हिंदी समलैंगिक कहानी जिसमें रात के वक्त एक लौंडा दो हरियाणवी मर्दों की रात गर्म करता है।
यह कहकर दोनों ठहाका मारकर हंसने लगे और शुभ ने मेरा सीधा हाथ अपने हाथ से पकड़कर अपनी पैंट की जिप पर रखवा दिया।
हाथ रखते ही मैं तो कामवासना की अग्नि से जल उठा। उसका लंड उसकी जिप के नीचे झटके मार रहा था, मैंने भी वासना में आहें निकालते हुए उसके डंडे जैसे खड़े लंड को हाथ में पकड़ लिया और उसको सहलाने लगा।
अभी मैं हरियाणा के यमुना नगर जिले में हूं. आपके पत्रों का इंतज़ार मुझे [email protected] पर रहेगा
आपका आशु